जन्माष्टमी पर्व है आया,
सुख समृद्धि उल्लास है छाया।
मंगल पावन अनुपम बेला,
विराज रहे लड्डू गोपाला।
मोर पंख का मुकुट निराला,
सर पर पहने हैं नंदलाला।
हाथों में है बंसी शोभे,
गले सुशोभित वैजयंती माला।
चंदन तिलक लगाए लल्ला,
तन पर पीले वस्त्र का जामा।
श्याम वर्ण है सुंदर काया,
घर-घर झूल रहे हैं झूला।
पीला पुष्प सुरभित कस्तूरी,
कानन कुण्डल भव्य मुख मंडल।
अद्भुत अलौकिक रूप सजीला,
सजा रही हर घर की बाला।
यशोदा माँ का राज दुलारा,
मन मोहिनी शृंगार तुम्हारा।
नंद बाबा की शान तुम ही से,
तुम्हें पसंद तुलसी की माला।
माखन मिश्री दही दूध चढ़ाती,
छप्पन तरह के भोग लगाती।
भाव विह्वल प्रीति दर्शाती,
आरती गाकर आशीष पाती।
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