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जब तक है ज़िंदगी (कविता)

ज़िंदगी जब तक है
गतिमान रहती है,
न ठहरती है, न विश्राम करती है।
सुख दुख, ऊँच नीच की
गवाह बनती है।
ज़िंदगी के गतिशीलन में
राजा हो या रंक
सब एक जैसे ही हैं,
छोटे हों या बड़े किसी से भेद नहीं है।
जन्म से शुरू ज़िंदगी
मौत तक का सफ़र तय करती है
जब तक चलती है ज़िंदगी
अनेकों रंग दिखाती है,
कहीं जन्म की ख़ुशियाँ
तो कहीं मौत का सेहरा सजाती है।
ज़िंदगी किसी के लिए रुकती नहीं
किसी के लिए हँसती या रोती नहीं है
ज़िंदगी जब तक है, चलती रहती है
मौत से पहले रुकती नहीं है
क्योंकि ज़िंदगी थकती नहीं है
ज़िंदगी जब तक है
अपने पथ पर चलती ही रहती है।


लेखन तिथि : 26 अप्रैल, 2022
            

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