इश्क़ से गर यूँ डर गए होते।
छोड़ कर यह शहर गए होते।।
मिल गए हमसफ़र से हम वर्ना,
आज तन्हा किधर गए होते।
होश है इश्क़ में ज़रूरी अब,
बे-ख़ुदी में तो मर गए होते।
यूँ कभी याद चाय की आती,
और हम तेरे घर गए होते।
वक़्त मिलता नहीं हमे अब तो,
"अर्श" थोड़ा ठहर गए होते।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें