ये हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाया,
इनका अस्तित्व कहाँ से आया,
सोचो इन सबको कौन बनाया,
किसने तुमको इन सब में भरमाया।
उसने धरती अम्बर एक बनाया,
सूरज चन्दा एक बनाया,
जीवनदायी जल और वायु एक बनाया,
एक शक्ति से सबको साथ मिलाया,
उसने तो केवल एक इंसान बनाया,
सबको दी उसने एक सी काया।
ये हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाया...
उसने नर और नारी दो जाति बनाया,
एक दूजे का अस्तित्व उन्हीं में समाया,
स्वयं रहे दूर पर निगरानी तन्त्र बनाया,
कर्मों को ही उसने सम्राट बनाया,
ज्ञान-विज्ञान, विष-अमृत, व्याधि-औषधि सबको साथ लगाया,
दण्ड पुरस्कार मिले उचित ऐसा तन्त्र बनाया।
ये हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाया...
नहीं कहा उसने तुम मेरा ही गुणगान करो,
श्रेष्ठ जीव हो बस जीवों के हित काम करो,
तुम भी एक जीव मात्र हो मत इतना अभिमान करो,
केवल अपने कर्मों पर अनुसन्धान करो,
कर्मों के बल तुम मानव या दानव बन जाते हो
फिर उसके जैसा ही फल पाते हो।
ये हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाया...
चन्द लोभी पाखण्डी ने तुमको बाँट दिया,
मन्दिर मस्जिद चर्च गुरूद्वारे की सौग़ात दिया,
तुमने तो अपने ही ऊपर बज्राघात किया,
जब दानवी कर्मो की शुरुआत किया,
नहीं पूछा जब अलग हुए मन्दिर मस्जिद चर्च गुरूद्वारे,
तो कहाँ गए सबके अपने धरती अम्बर सूरज चन्दा सारे।
भूषण वक्त अभी भी है अपने को पहचानो,
तुम मानव हो मानवता से रार न ठानो,
श्रेष्ठ जीव हो श्रेष्ठता को जानो,
जीवों के हित में ही अपने हित को पहचानो,
शक्ति तो उसकी है वह किसको कितना देता है,
पल भर में दुनियाँ को एहसास करा देता है।
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