हम जान गए साधो दरबार सियासी है,
बातें तो अदब की हैं किरदार सियासी है।
इक नर्सरी वाले ने हमको ये बताया था,
कुछ पौध हैं काँटों की रफ़्तार सियासी है।
तहज़ीब पसंदों की चर्चा न किया कीजे,
हर फूल पे पहरे हैं गुलज़ार सियासी है।
तारीफ़ करो उसकी जो सर को बचाए है,
हर रोज़ बदलती रंग दस्तार सियासी है।
मशग़ूल हैं जब ताज़िर लाशों की तिजारत में,
तब क्यों न कहें 'भोला' बाज़ार सियासी है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें