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होम करते हाँथ जलते (ग़ज़ल)

होम करते हाँथ जलते,
चाँद उगता सूर्य ढलते।

वे अदब से बोलते हैं,
पर हमें शादाब खलते।

ठूँठ सा इक वृक्ष है पर,
फल वहाँ पर ख़ाक फलते।

चाँदनी फैली जहाँ में,
जेठ से संभाग जलते।

दोस्त भी हैं यार भी हैं,
मूँग छाती पर न दलते।


लेखन तिथि : 8 अक्टूबर, 2019
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
तक़ती : 2122 2122
            

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