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होली का हुड़दंग (कविता)

आइए होली का स्वागत करते हैं
ख़ूब हुड़दंग करते हैं,
रंग अबीर गुलाल उडा़ते हैं,
मौक़े का फ़ायदा उठाते हैं
रंग की आड़ मेंं तारकोल लगाते है,
रिश्तों की आड़ मेंं बेशर्मी दिखाते हैं।
जिन्हें देख जलते भुनते रहे कल तक
आज होली पर गले लगाकर कटुता मिटाते हैं,
कोई कुछ भी कहे, कहता रहे
कटुता मिटाने के लिए
पीठ मेंं छुरा घुपाते हैं।
होली है तो हम भी होली मनाते हैं
रंग से तो सभी खेलते ही हैं होली
हम तो ख़ून का रंग लगाते हैं।
प्रेम, प्यार, भाईचारे का खेल
अपने अंदाज़ मेंं खेलना है मुझको,
आपको अच्छा लगे न लगे
मगर मै तो ऐसा ही रंग लगाना चाहता हूँ।
गुस्ताख़ियाँ भले न करूँ मैं होली मेंं
फिर भी आप सबको सिर झुकाता हूँ
होली के पावन पर्व पर
आप सबका आशीष चाहता हूँ,
होली के हुड़दंग मेंं रंग जाना चाहता हूँ।


लेखन तिथि : 19 मार्च, 2022
            

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