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हे! कृष्ण तुम्हें आना होगा (कविता)

अब हाथ जोड़कर विनती है,
हे! कृष्ण तुम्हें आना होगा।
अपनी नीति और गीता का,
उपदेश तुम्हें दुहराना होगा।

कंस जैसे राक्षसों का अब,
साम्राज्य यहाँ पर पनप रहा।
जहाँ धर्म की पूजा होती है,
वहाँ विघ्न ये पैदा करते है।
अधर्मी क्रूर दानवों का,
संहार तुम्हें करना होगा।
अब धर्म की रक्षा करने को,
हे! कृष्ण तुम्हें आना होगा।

दुर्योधन जैसा आतंक,
भारत में फिर से पनप रहा।
दुर्योधन अपनी जंघा पर,
नित नई द्रौपदी बिठा रहा।
द्रौपदी का करके चीरहरण,
दुशासन ख़ुशियों से झूम रहा।

ऐसे दुर्योधन-दुशासनों का,
वध करना बहुत ज़रूरी है।
प्रजा को अब भय से मुक्ति,
दिलाना बहुत ज़रूरी है।
अब हाथ जोड़कर विनती है,
हे! कृष्ण तुम्हें आना होगा।

धर्मी पांडवों की झोपड़ी में,
यहाँ आग लगाई जाती है।
नित नए लाक्षाग्रह जलाकर,
ये प्रजा सताई जाती है।
ऐसे ध्रृतराष्ट्र के पुत्रों का,
विध्वंस तुम्हें करना होगा।
अब हाथ जोड़कर विनती है,
हे! कृष्ण तुम्हें आना होगा।

ध्रृतराष्ट्र जैसे पुत्र प्रेमी,
नित नए समाज में फैल रहे।
पुत्रों को सत्ता मिल जाए,
दिन रात ये सपना देख रहे।
ध्रृतराष्ट्रों की इस इच्छा का,
विनाश तुम्हें करना होगा।
अब हाथ जोड़कर विनती है,
हे! कृष्ण तुम्हें आना होगा।

घर-घर में महाभारत का,
अब युद्ध यहाँ पर होता है।
पैसा ज़मीन और रिश्तों का,
प्रतिदिन बँटवारा होता है।
शकुनी मामा सी चालों का,
घर-घर में स्वागत होता है।
भारत में शांति लाने को,
हे! कृष्ण तुम्हें आना होगा।

बंशी की प्यारी धुन कान्हा,
अब नहीं सुनाई देती है।
तेरी मनमोहक छवि कान्हा,
अब नहीं दिखाई देती है।
फिर से अपनी लीला करने,
हे! कृष्ण तुम्हें आना होगा।

अब हाथ जोड़कर विनती है,
हे! कृष्ण तुम्हें आना होगा।


लेखन तिथि : 13 अगस्त, 2022
            

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