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हे! हिन्द धरा के वीर पुत्र (कविता) Editior's Choice

हे! हिन्द धरा के वीर पुत्र,
बलिदान तुम्हारा लिखता हूँ।
निज शब्द सुमन की स्याही से,
सम्मान तुम्हारा लिखता हूँ।

तुम मातृभूमि का गौरव हो,
अंतर्मन की हो तुम पुकार।
तुम बने हिमालय के प्रहरी,
तुम ही शत्रु पर हो प्रहार।

उस विजय दिवस के पन्नों पर,
जयगान तुम्हारा लिखता हूँ।
हे! हिन्द धरा के वीर पुत्र,
बलिदान तुम्हारा लिखता हूँ।

तुम शूरवीर हो शौर्य तिलक,
तुमने ही मृत्यु प्रण खींचा।
आज़ाद भगत की धरती को,
निज लहू से तुमने ही सींचा।

उन अमर शहीदों में पहले,
वह नाम तुम्हारा लिखता हूँ।
हे! हिन्द धरा के वीर पुत्र,
बलिदान तुम्हारा लिखता हूँ।

तुम सियाचीन, तुम कारगिल,
तुम हिम के आलय के रक्षक।
तुम परमवीर के चक्र अमर,
तुम ही बन जाते हो तक्षक।

वीरों की अमर कहानी में,
अभिमान तुम्हारा लिखता हूँ।
हे! हिन्द धरा के वीर पुत्र,
बलिदान तुम्हारा लिखता हूँ।

तुम बने शत्रु का काल सदा,
होठों पर भारत माँ की जय।
तुम लड़े साँस अंतिम तक ही,
अंतिम पल तुमको मिली विजय।

उस कफ़न तिरंगे में लिपटा,
यशगान तुम्हारा लिखता हूँ।
हे! हिन्द धरा के वीर पुत्र,
बलिदान तुम्हारा लिखता हूँ।


लेखन तिथि : 25 जून, 2022
कारगिल के अमर नायक कैप्टन मनोज पांडेय को समर्पित कविता
            

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