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गुरु (कविता) Editior's Choice

गुरु केवल राह दिखाते हैं,
चलना तो ख़ुद को पड़ता है।
गुरु तो दीपक बन आते हैं,
जलना तो ख़ुद को पड़ता है।

गुरु की वाणी में अमृत है,
चखना तो ख़ुद को पड़ता है।
गुरु रूपी नाव में पग अपने,
रखना तो ख़ुद को पड़ता है।

गुरु हाथों में होता स्नेह,
पाना तो ख़ुद को पड़ता है।
प्यास बुझाने गुरु कूप में,
आना तो ख़ुद को पड़ता है।

गुरु शिखर मार्ग दिखलाते हैं,
चढ़ना तो ख़ुद को पड़ता है।
गुरु साहस शौर्य सभी भरते,
बढ़ना तो ख़ुद को पड़ता है।

गुरु सिखलाते जीवन जीना,
पढ़ना तो ख़ुद को पड़ता है।
गुरु दक्षिणा में नव इतिहास,
गढ़ना तो ख़ुद को पड़ता है।


लेखन तिथि : 5 सितम्बर, 2021
            

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