देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

ग़रीबी (कविता)

बातें करते ग़रीबी की, खुद बैठकर महलों के अंदर,
कभी तो घूमो ग़रीब की बस्ती में, देखो उनकी गुज़र बसर।
मोहताज़ है वह एक एक रोटी को, करते दिन भर मज़दूरी,
इधर उधर कचरा बीनते रहतें, कुछ तो समझो इनकी मजबूरी।

बच्चों के पास नहीं पहनने को कपड़े, तन की त्वचा झाँक रही बाहर,
थोड़ी सी बारिश क्या आ जातीं, भर जाता पानी झोपड़े के अंदर।
झूठे भाषणों से क्या होगा भला, करों उनका सच में उत्थान,
अगर ग़रीबी का है यह बदहाल, कैसे होगा राष्ट्र का निर्माण?

अमीर जाता है जिम, अपना शरीर कम करने की लेकर तमन्ना,
यहाँ तो यूँ ही शरीर सूखता जाता, जब पड़ता है भूख से तड़पना।
कोई सजाता थाली अपनी, मीठे-मीठे भर कर पकवान,
ग़रीबों को न मिलती सूखी रोटी, सूखा पेट और भूखी जान।

अमीरों के तो कुत्ते भी पलते हैं एयर कंडीशनर कमरे में,
ग़रीब को तो नसीब नहीं होते ढकने को पूरे कपड़े तन पे।
कहते हैं लड़कियाँ होती दुर्गा का स्वरुप, यहाँ तो अस्मिता बिकती रहती मजबूरी में,
सर्व शिक्षा की क्या बात करें, ज़िंदगियाँ गुज़र जाती ग़रीब की मज़दूरी में।

अमीर के घर बर्बाद करते हैं रोज़, बोतल बंद पीने का पानी,
ग़रीब को कहाँ मिलता हरदम, प्यास बुझाने को चुल्लू भर पानी।
कोई ख़र्च करता करोड़ों, स्वास्थ्य की करता रहता यूँ ही देखभाल,
ग़रीब को कहाँ सामर्थ्य इस बात का, बिमारियों से होता रहता हाल बदहाल।

रात्रि के गहन अँधियारे में, जब लोग चैन की नींद सोते हैं,
भूख प्यास से तड़पते ग़रीब के बच्चे, ठण्ड में काँपते रहते हैं।
न होती तन पर चादर, न होती घरों पर सिर ढकने को छत,
बारिश की बुँदे पड़ती रहती, तड़पता रहता ग़रीब का तन मन आहत।

अगर समझना चाहो ग़रीबों का हाल, तो ग़रीबों के साथ रहना सीखो,
उतार फेंको अमीरी का चोगा, ग़रीब बनकर तुम जीना सीखो।
वरना न करो बड़ी बड़ी बातें, न करों उनके आत्मसम्मान पर आहत,
एक हाथ अपना बढ़ा कर तो देखो इनकी ओर, पा जाओगे ईश्वर की इनायत।


लेखन तिथि : 13 फ़रवरी, 2022
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें