बेनक़ाब चेहरे हैं
दाग़ बड़े गहरे हैं
टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ।
लगी कुछ ऐसी नज़र
बिखरा शीशे-सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ।
पीठ मे छुरी-सा चाँद
राहु गया रेखा फाँद
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ।
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