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गणपति विनायक (घनाक्षरी छंद)

स्वामी मंगलकरता, गजकाय विनायक।
ऋद्धि सिद्धि हरषित, मोह दिखावत है॥

तिरलोकी शिवसुत, भव कलुष नाशक।
गौरी तनय गणेशा,मातु सुहावत है॥

मूसक राज दिलाए, ज्ञान सुधा वरदान।
लंबोदर को मोदक, भोग लुभावत है॥

प्रथम पूजनीय हो, चौदह भुवन हरि।
तिलक सिंदूरी ताप, सुर मनावत है॥

जग में नाम आपका, डरते असुर सदा।
आज्ञा पालक मातु का, शीश कटावन है॥

घूम-घूम मात पिता, नभ थल तीनो लोक।
चतुराई ही विजय, सदा सिखावन है॥

हे! गौरी के लाल तुम, लिखते महाभारत।
शांत चित चंचलता, तो मनभावन है॥

भक्ति भाव तन मन, अरपन गजानन।
दीजो मंगल आशीष, आरती गायन हैं॥


लेखन तिथि : 31 अगस्त, 2022
मनहरन घनाक्षरी
            

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