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फ़ासले (कविता)

उम्र ढलती गई, अंदाज़ बदलते गए,
दिल से दिल के फ़ासले बढ़ते गए।
जीना चाहते हैं सभी सुकून से,
सुकून की ज़िंदगी के मायने बदलते गए।

अपने सभी बेगाने होते गए,
बेगाने सभी अपने बनते गए।
अपनो से अपनों ने बढ़ाई दूरियाँ,
संबंध निभाने के तरीक़े बदलते गए।

ज़िंदगी के रास्ते बदलते गए,
रास्तों के राही सभी बिछड़ते गए।
सोचने के पहलु बदलते गए,
ज़िंदगी के फ़लसफ़े बदलते गए।

साजों के तार बदलते गए,
लोगों के अंदाज़ बदलते गए।
बचपन के दोस्त बिछड़ते गए,
रिश्तों के पैमानें बदलते गए।

बड़ी तेज़ी से बदल गई दुनिया,
दिलों के अरमान बदलते गए।
बढ़ गया संबंधों का खोखलापन,
अपनेपन के अहसास बदलते गए।

क्या इसी लिए रची थी ईश्वर ने दुनिया,
कि इंसानियत के पैमानें ही बदलते गए?
चेहरों ने पहन लिए नकली मुखौटे,
मुखौटों के अंदर चेहरे बदलते गए।

एक ही घर में रहते हैं सभी लोग,
पर रहने के अंदाज़ बदलते गए।
मिट गया बड़ों के प्रति सम्मान,
छोटों के दिलों से संस्कार मिटते गए।

न रहा वह भावों का सुहानापन,
अपनेपन के भाव घटते गए।
मिट गई दिलों की नज़दीकियाँ,
नफ़रतों के दायरे बढ़ते गए।

बेरुख़ी सी हो गई यह ज़िंदगानी,
ख़ुशियों के पल भी घटते गए।
ज़िंदगी की हो गई इन्तहाँ,
दुःखों के अहसास बढ़ते गए।

फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम में दोस्त बढ़ते गए,
असली जीवन में सखा घटते गए।
न रही बचपन की निःस्वार्थ भावना,
हर जगह बस फ़ासले बढ़ते गए।


लेखन तिथि : 8 अक्टूबर, 2021
            

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