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दोष किसका? (लघुकथा)

आज रमा को अपनी भूल का बहुत पछतावा हो रहा था।आज रह रह कर कर उसे वह दिन याद आ रहा था, जब उसने माँ-बाप की चिंता में और पति के आर्थिक हालत के विपरीत परिस्थितियों के बीच माँ-बाप के हितों को महत्व देते हुए ससुराल से मायके आने का फैसला किया था। उसे ख़ुद के पति के परिवार से अधिक अपने मायके और माँ-बाप भाइयों की चिंता और उन पर विश्वास बहुत था।उस समय उसके मन में बस एक सवाल था कि बुज़ुर्ग माँ कैसे खाना बनाकर बाप भाई को खिला पाएगी? कैसे घर के काम निपटा पाएगी?

उस समय स्वार्थ बस माँ-बाप भाइयों ने भी उसके इस निर्णय को सही ठहराया था। तब किसी ने भी उसके निर्णय का विरोध नहीं किया था, क्योंकि उन्हें अपनी सुख सुविधा बेटी बहन के भविष्य के आगे अधिक महत्वपूर्ण लग रही थी।

लेकिन समय के साथ जैसे-जैसे भाइयों की शादियाँ होती गई, रमा की बुराइयों का दौर शुरू हो गया। अब वही माँ-बाप जो कल तक तारीफ़ों के पुल बाँधा करते थे, उसे उपेक्षित करने, ताना मारने और ससुराल से मायके आकर रहने का भी अहसास कराने लगे।

संयोग भी कुछ ऐसा बना कि एक तरफ़ उसके पति की आर्थिक हालत मैं बहुत सुधार नहीं हुआ बल्कि वे अस्वस्थ भी रहने लगे। आज की उसकी परिस्थिति के हिसाब से अब वह ससुराल से भी उपेक्षित हो चुकी थी। हालत ये थी की जन्म देने वाली माँ भी न केवल उपेक्षित कर रही थी बल्कि उसके उस समय के निर्णय को ग़लत ठहराने लगी। जबकि माँ ने अपना कर्तव्य समझकर उस समय उसे सही ग़लत का एहसास कराया होता तो शायद रमा के हालात हालात कुछ और होते और किन्हीं भी स्थितियों में वह अपने पति के साथ ससुराल में होती। कम से कम इस हालत में तो वह 'ना घर का, ना घाट का' जैसी परिस्थिति में तो न होती।

लेकिन कहते हैं ना कि अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। रमा को भी अभी अहसास हो गया था कि धन वालों का ही आज सम्मान है। रिश्ता कोई भी हो धन की महत्ता के आगे सारे रिश्ते नाते फीके हो गए।
आज रमा घुट-घुट कर अपना समय काट रही थी कि शायद आने वाले कल मेंउसके हालात बदल जाए। लेकिन वह ये विश्वास नहीं कर पा रही थी कि उसकी ही माँ ने उसकी परिस्थितियों का कैसा लाभ उठाया, जिसमें उसकी अपनी बेटी सिसकने को मजबूर हो रही थी।

वो समझ नहीं पा रही कि अपने इस हालत के लिए वो किसे दोष दे? माँ को, ख़ुद को या समय को।


लेखन तिथि : 13 अप्रैल, 2020
यह लघुकथा सत्य घटना पर आधारित है।
            

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