प्राची से रवि का हो रहा आगमन,
ला रहा वह संग भोर भरा दामन।
शीतल सुवासित बयार बहने लगी,
मनमोहक पुष्पों से निखरा चमन।
धूप की चादर तन गई चारो ओर,
सुनाई पड़ने लगा हर तरफ़ शोर।
काम पर निकले श्रमिक व कृषक,
वक़्त को जैसे चुरा लेता कोई चोर।
थक कर खेतों पर बेचारे किसान,
पेड़ों की छाया में वह करें विश्राम।
मिले असीम आनंद वहाँ छाँव में,
तन को भी मिलता थोड़ा आराम।
सूरज भी कब तक रुकता भला,
पक्षियों का झुंड भी लौट चला।
संध्या भी अब ढलने को आई,
आ गई है पावन गोधूलि बेला।
घर की राहें प्रतीक्षा में बिछ गई,
रोटियाँ भी लो अब तो सिंक गई।
एहसास हो वापसी की घड़ी का,
माँ की दृष्टि द्ववारे पर टिक गई।
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