दिल के घाव कभी तो भर जाएँगे,
पर नज़रों से लोग उतर जाएँगे।
हम सच की कुटिया के बाशिंदे हैं,
झूठ अगर बोले तो मर जाएँगे।
देखना इक रोज़ तुम्हारे मण्डप पर,
हँसते-हँसते फूल बिखर जाएँगे।
राजा दशरथ को ये इल्म कहाँ था,
ख़ुद के वरदानों से मर जाएँगे।
कौन डुबाएगा दरिया में हमको,
ख़ुद पर राम लिखेंगे तर जाएँगे।
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