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चिरैया का आशा संदेश (कविता)

ओ चिरैया, क्या संदेश है तेरा चीं-चीं से,
क्यों जी रहा मानव होठ सीं-सीं के।
मैं तो बेज़ुबान हूँ, फिर भी देखो,
संदेश है मेरा, देख, जीवन को जी के।

क्यों समझ नहीं आती मानवता की परिभाषा,
तू बोल के तो देख, दो बोल, मीठी भाषा के।
सब कुछ है बदलता, हिम्मत मत हार,
ये दिन भी कट जाएँगे, हिम्मत रख के।

मैं भी तो आस लगाए बैठी हूँ,
ये अँधियारा भी ढल जाएगा,
सुहानी सुबह होगी, दर्शन होंगे रवि के।
रात होगी अब ऐसी,
फिर गाएँगे, गीत चाँदनी के।

मुझको भी चिंता अपने बच्चों की,
कब खाएँगे, सब पेट भर के।
ये महामारी का भी होगा विनाश,
फिर उड़नी है उड़ान जी भर के।

मत बाहर निकलना तू,
शिकारी बैठा है घात लगा के।
अभी जो कोप है चल रहा,
उससे ही तू सीख ले नियम प्रकृति के।

मैं भी चहचहाने को आकुल हूँ,
कलरव करना चाहती हूँ।
मस्त गगन की सैर करूँ,
हर पल यही सोचती रहती हूँ।

होता आया है नया सवेरा,
बाद हर अँधियारी रात के।
जी लेना जी भर के अपना ये जीवन,
आने वाले हैं पल ख़ुशियों के।

चल उठ अब नई भोर हुई,
मैं चीं-चीं कर तुझे उठा रही।
मुझको दाना डाल अपने आँगन में,
मैं फुदक-फुदक तेरा इंतज़ार कर रही।

नई सुबह का स्वागत कर,
फूलों का खिलना देख कर के।
फिर से सुन ले कोयल की कुहू-कुहू,
रंगो से सजा ले अपना जीवन,
नए-नए भर दे रंग अपनी चित्रकारी के।


लेखन तिथि : मई, 2021
            

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