कोरोना / देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

चिराग़ों तले ही अँधेरा मिला है (ग़ज़ल) Editior's Choice

चिराग़ों तले ही अँधेरा मिला है,
मिला जो भी भूका कमेरा मिला है।

इमारत सदा ही बनाई हैं जिसने,
उसे पुल के नीचे बसेरा मिला है।

यहाँ पसलियों की नुमाइश लगा कर,
मज़े ख़ूब करता चितेरा मिला है।

कहें ज़िन्दगी या इसे हम तमाशा,
ख़ुदा भी हमें तो लुटेरा मिला है।

अगर बात कीजे हमारे हक़ों की,
न तेरा मिला है न मेरा मिला है।

हमें बस उठाने निकलता है सूरज,
किसी और को ही सवेरा मिला है।


मनजीत भोला
सृजन तिथि : 20 मई, 2021
अरकान: फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़ती: 122 122 122 122
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें