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छत्रपति शिवाजी (कविता)

माता जीजाबाई पिता शाह जी के
घर उन्नीस फ़रवरी, सोलह सौ तीस को
शिवनेरी, महाराष्ट्र के मराठा परिवार में
जन्मा था एक बालक महान
नाम मिला शिवाजी था।
माता धार्मिक और वीरांगना थीं
रामायण, महाभारत और महापुरुषों की
कहानियाँ सुनाया करती थीं,
दादा कोणदेव जी ने उनको
युद्ध कौशल का ज्ञान दिया,
राष्ट्रप्रेमी, कर्त्तव्य परायण, कर्मठ
योद्धा शिवाजी को बनाया।
कहते हैं कि पूत के पाँव
पालने में ही दिखने लगते हैं,
नेतृत्व के गुण उन बच्चों में
बचपन के खेलकूद में दिखते हैं,
नेता बन कर शिवाजी बच्चों संग
किला जीतने का खेल खेला करते थे।
युवा शिवाजी ने कर दिया
सोलह साल की उम्र में ही
पूणे तोरण दुर्ग फतेह कर बड़ा कमाल।
बीजापुर शासक आदिलशाह ने तब
उन्हे पकड़ने का गुप्त प्लान किया तैयार
शिवाजी तो हाथ नहीं आए
पिता शाहजी गिरफ़्तार हुए।
हिम्मत वाले शिवाजी ने
तब अपना दिमाग़ चलाया,
छापेमारी की युद्ध नीति से
पिता को आज़ाद करवाया।
पुरंदर और जावेली किलों पर 
शिवाजी ने जब पुरंदर और
जावेली किलों पर क़ब्ज़ा कर लिया,
औरंगजेब ने फिर नई योजना तैयार किया।
भेज जयसिंह, दिलीप खान को
औरंगजेब ने संधि करवाया,
चौबीस किले सधिं में देकर
शिवाजी को आगरा बुलवा
शिवाजी को क़ैद कर दिया।
तब अपने साहस से शिवाजी
आख़िरकार फरार हो गए
अपने सारे किलों पर फिर से
अपना अधिकार कर लिए।
तब छत्रपति की उपाधि पा
धार्मिक सहिष्णुता भी पाई,
हिन्दू होकर भी शिवाजी ने
कई मस्जिदें भी बनवाई।
हिन्दू धर्मावलंबी ही नहीं
मुस्लिम पीर, फ़क़ीर, मौलवी भी
करते थे सब शिवाजी का सम्मान
दशहरे पर शुरू होता रहा
छत्रपति का निज अभियान।
अचानक बुखार आने बढ़ने से
शिवाजी आख़िर हार गए,
तीन अप्रैल, सौलह सौ अस्सी को
संसार को अलविदा कह गए।
वीर मराठा छत्रपति जी
अपना पौरुष दिखा गए,
नाम के अपनी कीर्ति शिवाजी
धरती पर फिर भी छोड़ गए।
अपने नायक छत्रपति जी को
नमन हमारा सौ-सौ बार,
श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं
हम सब भारतवासी बारंबार।


लेखन तिथि : 19 फ़रवरी, 2022
            

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