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छठ पूजा (कविता)

सूर्योपासना का अत्यानुपम त्योहार,
वैदिक आर्य संस्कृति का है उपहार।
मनाते पर्व धूमधाम से नर और नारी,
राज्य उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार।

दीपावली पर्व के षष्ठम दिवस पर,
सर्वकामना पूर्ति का माँग कर वर।
छठी मइया का करते पूजा अर्चन,
चतुर्दिवसीय व्रत का संकल्प धर।

छठ पर्व के अनुष्ठान अति कठोर,
पूजन व्रत अर्ध्य करें सायं व भोर।
निर्जल उपवास करें तीन दिन तक,
भक्तजनों की तपस्या साधना घोर।

प्रथम दिवस छठ नहाय खाय का,
गंगा में स्नान स्वच्छता पर्याय का।
सात्विक आहार ग्रहण करते व्रती,
मूँग, चना, कद्दू व चावल द्रव्य का।

द्वितीय दिन होता लोहंडा या खरना,
दिनमान उपवास हो निर्जला धरना।
रात्रि में रसखीर बने गन्ने के रस से,
नियम संयम हो ज़रूरी पालन करना।

तृतीय दिवस होता संध्या अर्ध्य का,
अति विशेष पुण्यकाल छठ पर्व का।
दउरा में ठेकुआ कचवनिया भर कर,
सिर पर धर चलें पावन क्षण गर्व का।

विविध सामग्री लगे पूजा अर्चना में,
कंदमूल फल व सब्जी चढ़े पूजन में।
कुसही केराव के दाने भरकर टोकरे,
प्रातःकाल प्रयोग करें सूर्य अर्पण में।

चतुर्थ दिवस षष्ठी उदीयमान सूरज,
मस्तक लगाते घाटों की पवित्र रज।
पानी में खड़े पूरब दिशा के सन्मुख,
अर्ध्य दें भक्त जन वैमनस्य को तज।

पूजा अर्चना समाप्तोपरांत पूजें घाट,
प्रफुल्लित हो गीत संगीत गाते भाट।
घर में आ व्रत पारण करते छठ व्रती,
श्रद्धा से मनाते उम्र बीस हो या साठ।

पूर्ण करें सारी मनोकामना छठी माता,
पूरे नियम व संयम से जो व्रत निभाता।
विधि विधान से व्रत पूजन करके व्रती,
जीवन में शुभता व आर्शीवाद है पाता।।


रचनाकार : सीमा 'वर्णिका'
लेखन तिथि : 10 नवम्बर, 2021
            

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