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छँटे रात्रि फिर सबेरा (दोहा छंद)

चहल पहल फिर से शुरू, जीवन नया प्रभात।
सजी रेल से पटरियाँ, गमनागम सौगात।।

फँस जनता जज़्बात में, नतमस्तक सरकार।
कोरोना नित बढ़ रहा, चिन्ता है व्यापार।।

कोराना से डर नहीं, भूख प्यास बस शोक।
बचें तभी तो ज़िंदगी, रोक पलायन रोक।।

कैसे होगी अरुणिमा, फैलेगा जब रोग।
नहीं बचोगे तुम धरा, कौन करेगा भोग।।

आत्म बली धीरज रखो, चलो देश के साथ।
तभी भोर शुभ ज़िंदगी, रोगमुक्त जब हाथ।।

रोग विकट है जग फँसा, लख-लख जन संहार।
यदि अब भी चेतो नहीं, नहीं भोर आसार।।

आई है विपदा बड़ी, बाधित देश विकास।
धैर्य परीक्षा की घड़ी, छँटे तिमिर की आस।।

होते क्यों हो उतावला, रखो मनसि विश्वास।
फिर से गुँजेगा निकुंज, जीवन हरित सुवास।।

कामयाब होंगें सभी, भागेगा यह रोग।
सावधान संयत बने, समझ समय दुर्योग।।

दुख सुख जीवन चक्रिका, गमनागम जग रीत।
छँटे रात्रि नित सबेरा, है जीवन संगीत।।


लेखन तिथि : 11 मई, 2020
            

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