वसुधा के
पाप यहाँ
धोता है मेह।
सड़कें गलियाँ
और शिलाएँ हैं।
लू से झुलसी
हुईं फ़िज़ाएँ हैं।।
लगा भिगोने सबको
पावस का नेह।
वर्षा के जल
में तैरती नदी।
सावन है नेकी
जेठ है बदी।।
बारिश ने मानी
चौमासे की देह।
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