देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

चौमासे की देह (नवगीत)

वसुधा के
पाप यहाँ
धोता है मेह।

सड़कें गलियाँ
और शिलाएँ हैं।
लू से झुलसी
हुईं फ़िज़ाएँ हैं।।

लगा भिगोने सबको
पावस का नेह।

वर्षा के जल
में तैरती नदी।
सावन है नेकी
जेठ है बदी।।

बारिश ने मानी
चौमासे की देह।


लेखन तिथि : 19 सितम्बर, 2019
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें