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चल हंसा वा देस (पद) Editior's Choice

चल हंसा वा देस जहँ पिया बसै चितचोर।
सुरत सोहासिन है पनिहारेन, भरै टाढ़ बिन डारे॥
वहि देसवाँ बादर ना उमड़ै रिमझिम बरसै मेह।
चौबारे में बैठ रहो ना, जा भीजहु निर्देह॥
वहि देसवा में नित्त पूर्निमा, कबहुँ न होय अँधेर।
एक सुरज कै कवन बतावै, कोटिन सुरज ऊँजेर॥


रचनाकार : कबीर
            

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