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भ्रुण की ख़्वाहिश (कविता)

मैं हूँ छोटी अधकली,
कोख में माँ से लिपट रही,
जन्म दात्री हिम्मत करती,
दुनिया को डपट रही।
मुझको भी इस धरा का,
आनंद लेने का अधिकार दो,
ना मारो मुझको कोख में,
जीवन हेतु चित्कार रही।।

मैं बेटी हो जाऊँ अगर,
देवी सा भाग सजाऊँगी,
बोझ नहीं, पथरीली चोटें,
खाकर नेह निभाऊँगी।
हत्या न करो भ्रूण रूप,
जग को आके बतला सकूँ,
अभिमन्यु सा ब्युह भेद,
लोभी का ज्ञान बढ़ाऊँगी।।

संस्कार, त्याग और ममता संग,
घर मे ख़ुशियाँ लाऊँगी,
पुत्र श्रवण सा चारो धाम,
मात पिता का ऋण चुकाऊँगी।
अब तो जागो, अब तो जागो,
भाई पिता तुम प्रण करो,
फूल की ख़ुशबू पवित्र तुलसी,
सा आँगन शितलाऊँगी।।


लेखन तिथि : 27 जुलाई, 2022
            

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