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भोर भी होगी (कविता)

भोर भी होगी सूरज भी निकलेगा,
चाँदनी सँग-सँग चाँद भी बहकेगा।

पर ना खिलेंगे मिट गए जो फूल,
मिट गए माटी में बन गए जो धूल।

नदियाँ भी बहेंगी सागर भी छलकेगा,
बारिश भी होगी बादल भी बरसेगा।

पर ना बहेंगी यथार्थ की भावनाएँ,
बरसेगी सिर्फ़ यादों की कल्पनाएँ।

अब सिर्फ़ यादों का निशाँ रह जाएगा,
सच तो उनके साथ-साथ बह जाएगा।।


रचनाकार : कमला वेदी
लेखन तिथि : 13 अगस्त, 2021
            

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