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बेटी (कविता)

बेटी है जगसार सुनो, बेटी से संसार सुनो,
बेटी ना हो जिस घर में, वो सूना है घर द्वार सुनो।
अफ़सोस मुझे क्यों बेटी को, बेटों से कम आँका जाता,
व्याकुल हो जाती है बेटी, पापा के चुभ जो कहीं काँटा जाता।
मोल नहीं है बेटी का, अनमोल है उसका प्यार सुनो,
बेटी है जगसार सुनो, बेटी से संसार सुनो।
बेटी ना हो जिस घर में, वो सूना है घर द्वार सुनो।

एक नहीं है बेटी जिसके, रूप हैं कितने आज सुनो,
सबकुछ सूना बेटी के बिन, अब तुम उसके काज सुनो।
बेटी बनकर मात-पिता का हरपल कितना ख़्याल रखे,
बनकर बहना भाई की भूख-प्यास का ध्यान रखे।
माँ बनकर बच्चों पर हरपल जान छिड़कती है,
पत्नी बनकर प्रियतम का करती है सत्कार सुनो।
बेटी है जगसार सुनो, बेटी से संसार सुनो,
बेटी ना हो जिस घर में, वो सूना है घर द्वार सुनो।


लेखन तिथि : 13 नवम्बर, 2020
            

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