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बेटी है तब (कविता)

बेटी है, तब माता है,
बेटी है, तब बाप।
बेटी है, तब पत्नी है,
बेटी है, तब हम, आप।।

बेटी है, तब रिश्ते हैं,
बेटी है, तब परिवार।
बेटी है, तब सृष्टि है,
बेटी है, तब संसार।।

बेटी है, तब प्यार है,
बेटी है, तब तकरार।
बेटी है, तब ब्याह है,
बेटी, तब घर-बार।।

बेटी है, तब काम है,
बेटी है, तब आराम।
बेटी है, तब पुण्य है,
बेटी है, तब हरि नाम।।

बेटी है, तब वर्ण है,
बेटी है, तब धर्म।
बेटी है, तब जात है,
बेटी है, तब शर्म।।

बेटी है, तब बहन है,
बेटी है, तब बहू-सास।
बेटी है, तब तृप्ति है,
बेटी है तब, उल्लास।।

बेटी की रक्षा करे
करे सदा सम्मान।
बेटी पाले, पढाए,
वहि वास्तव इन्सान।।

बेटी को अबला समझ,
करता जो अपमान।
मारे, ताड़े, शोषण करे,
इंसाँ नहिं, हैवान।।

बेटी अब अबला नहीं,
बुद्धिमान, बलवान।
मानो स्वर्ग-सुख दायिनी,
ताडो़ तो, दुख की खान।।


लेखन तिथि : 15 अक्टूबर, 2021
            

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