ऋतुराज बसंत जब आता है,
संग माँ सरस्वती को लाता है।
माघ मास शुक्ल पक्ष को,
बसंत पंचमी भी साथ लाता है।
माँ धवलधारिणी, माँ ज्ञानदायिनी,
माँ वीणावादिनी, माँ शारदे,
माँ सरस्वती की पूजा आराधना
सब ज्ञान पिपासु करते हैं,
माँ की कृपा, आशीष से
स्व ज्ञान का भंडार भरते हैं।
बासंती परिधान धारकर
माँ का पूजन अर्चन करते,
माँ को बासंती पुष्प अर्पित कर
केसरिया चावल का भोग लगा
माँ को अपना शीष नवाते,
सरसों के खिले पीले पुष्प
पीले चादर सा अहसास कराते।
तितलियों के नृत्य नैसर्गिक आनंद देते,
भौंरे गुँजन कर कलियों के रस पीते,
मधुमक्खियाँ भी इन दिनों
छत्तों में मधु का भंडार भरतीं।
अद्भूत छटा बसंत की देख
हम सब पुलकित हो उठते हैं,
खोकर सुध-बुध अपनी-अपनी
प्रेम सागर में डुबकियाँ लगाते हैं,
बसंत की ख़ुशियों में डूब हम
बसंतोत्सव उत्साह से मनाते हैं।
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