देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

आज़ादी का अमृत महोत्सव (कविता)

आओ सब मिल कर मनाएँ उत्सव,
आज़ादी का अमृत महोत्सव।
साल पचहत्तर बीते हैं अभी तक,
नाम भारत का गूँज रहा जल थल नभ तक।
उड़ान जो भरी है अब नहीं रुकेंगे हम,
दुनिया देखेगी अब भारत का दम।
विश्वगुरु था, विश्वगुरु फिर से बन रहे,
संसार के लिए हम मसीहा बन रहे।
राम, गौतम बुद्ध, महावीर की है यशोभूमि,
गुरु नानक, गोविंद, तेग़ बहादुर की है यह पावन भूमि।
श्री कृष्ण ने जहाँ कर्म का उपदेश दिया था,
पाप बढ़ने पर दुष्टों का संहार भी किया था।
सीता, सावित्री जैसी देवियों को पूजते हैं हम,
रानी लक्ष्मीबाई, हाड़ी रानी की ही संतान हैं हम।
गाँधीजी की अहिंसा को भी अपनाया,
ज़रूरत पड़ी तो भगत सिंह ने शौर्य भी दिखलाया।
बोस, आज़ाद, बिस्मिल दिल में बसे हैं,
सुखदेव, राजगुरु तन-मन में रचे हैं।
आपस में भले ही कितना ही लड़े हैं,
देश की ख़ातिर सब भूल, देशधर्म पर मरे हैं।
मनाया हमने हर एक धर्म का पर्व है,
हमें हिंदुस्तानी होने पर गर्व है।
आओ मनाएँ आज़ादी का, ये महापर्व है,
देश की ख़ातिर न्यौछावर सर्वस्व है।
भले ही कितना लूटा गया है भारत को,
कितना है दम बाजुओं में दिखा दिया सबको।
संयुक्त राष्ट्र में पहचान दिलाई हिंदी को,
औक़ात याद दिला दिया महाशक्तियों को।
जिसको साँप सँपेरों का देश कहा गया,
ताक़त का अपनी लोहा मनवा दिया।
तो क्यों ना हो हमें भारतभूमि पर गर्व,
सोने की चिड़िया फिर से कर रही कलरव।
आओ मनाएँ आज़ादी का अमृत महोत्सव,
जय हिंद जय भारत अब बोलिए सब।
आओ मनाएँ आज़ादी का अमृत महोत्सव।।


लेखन तिथि : 15 अगस्त, 2022
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें