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अटूट बंधन (लघुकथा)

पति-पत्नी का रिश्ता सामंजस्य की डोर से बंधा होता है।
उनमें अक्सर तूँ-तूँ मैं-मैं, नोंक-झोंक होती थी। लगता था सारा पारिवारिक वातावरण कलहपूर्ण-क्लेशपूर्ण हो गया है। रोज़-रोज़ की खट-पट और चिक-चिक से वे ऊबते भी नहीं थे।
कुछ लोगों ने उन दोनों के बीच हस्तक्षेप करने की कोशिश की तो उन्हें नागवार गुज़रा। उनके बीच तनावपूर्ण संबंध भले ही हों पर उन्हें किसी तीसरे का दख़ल बर्दाश्त नहीं था।

एक दिन मैंने बड़े धैर्य के साथ पूँछा- "आप लोगों के बीच जो लड़ाई-झगड़ा होता है वो कटुता के बीज नहीं बोता।"

वे बोले- "कतई नहीं। बल्कि ऐसे मैं तो प्यार बढ़ता है।"

यह सुनकर मुझे उनके बीच शादी का अटूट बंधन दिखाई देने लगा था।


            

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