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आर्यावर्त और हिंदी (कविता)

बहुभाषी है आर्यावर्त, हिन्दी भाषा सिरमौर।
देवनागरी लिपिबद्ध, संस्कृत व्याकरण ठौर।
उन्नत व्यापक सम्पूर्ण है, मातृभाषा शब्दकोश।
निपट अज्ञानी भाग रहे, आंग्ल भाषा की ओर।।

हिन्दी मूर्धन्य भाष्य है, संगम अनेक बोली।
ब्रज ज़ुबान मिश्री घुली, हिन्दी हमजोली।
हरियाणवी ठेठ खड़ी, व्यंग-विनोद सहेली।
आंग्ल शब्द मिश्रित, शहरी हिंग्लिश बोली।।

अहा! समय का परिवर्तन, कैसा है आया।
निज भाषा को भूले, पर भाषा भरमाया।
क ख ग घ ड़ पढ़ने में, बचपन है शरमाया।
ए बी सी डी ई बोलता, बाल युवा भ्रम साया।।

शासन, प्रशासन, न्यायालय ने, हिन्दी ठुकराया।
हर ऑफ़िस में कामकाज,
अंग्रेजी पनपाया।
अ से अनार, एक ईकाई,
भूल रहे ककहरा।
अंग्रेजी परिवेश बना रहे, है गुड मार्निंग प्यारा।।

आह! विडम्बना कैसी, कैसी है मजबूरी।
उन्नत भाषा हिन्दी है, क्यूँ आ रही दूरी।
समय अभी है शेष, सभंल भारतवर्ष महान।
सर्वश्रेष्ठ है जगत में, हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान।।

आओ संकल्प करें हम मन से,
हिन्दी का उत्थान करेंगे।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण,
हिन्दी के रंग से रंग देगें।।


लेखन तिथि : 18 सितम्बर, 2020
            

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