पंखुड़ियों में सिमटी कलियाँ,
अरुणिमा उषा है खिली-खिली।
मुस्कान सुरभि यौवनागमन,
मधुपर्क मधुर नव प्रीति मिली।
श्री प्रभा उषा विलसित सुष्मित,
वसुधा प्रकृति वधू रूप सजी।
चहुँ दिशा चहकते विहग गगन,
जाग्रत सब प्राणी प्रगति पथी।
कुहकी कोइली कूका कोयल,
मधुरिम शीताकुल हवा चली।
मुस्काता अरुणोदय पूरब,
सतरंग मुदित चहुँ दिशा खिली।
हिय नव उमंग बन नव तरंग,
उत्थान नवल नव सोच मिली।
गतिमान सुपथ नव प्रगति परक,
उद्योग नवल अरुणिमा खिली।
हो स्वस्ति जगत सब शोकहरण,
पुरुषार्थ सुपथ शुभ सिद्धि मिले।
हो सार्वभौम आरोग्य जगत,
परमार्थ मुदित घर रिद्धि मिले।
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