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अपनी भी दीवाली होती (नज़्म)

होता तेरे चेहरे का नूर,
रात न फिर ये काली होती।
जश्न मनाते साथ तुम्हारे,
अपनी भी दीवाली होती।

बैठे हैं हम मन को मारे,
यादों की इक नदी किनारे।
कहने को बात ज़रा सी है,
ख़ामोशी और उदासी है।
सोच रहे हैं जाने किसको,
भूल गए हैं शायद उसको।
दिल को हम ये समझाते हैं,
यादों की याद मिटाते हैं।
यूँ तन्हाई से क्या होगा,
अब तू ही कह क्या भला होगा।
या मंज़र कुछ ऐसा होता,
सरयू के तट जैसा होता।
या तुझसे मिलने आते हम,
हर ज़ख्म रफ़ू कर जाते हम।
दौड़ गले लग जाए तुमसे,
हर धड़कन में बस जाते हम।
चूमे माथा यार तुम्हारा,
दिल मे रक्खें प्यार तुम्हारा।
तब तो बात निराली होती,
जश्न मनाते साथ तुम्हारे।
अपनी भी दीवाली होती।।


लेखन तिथि : 4 नवम्बर, 2021
            

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