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अपने महबूब से आज इज़हार करना है (कविता)

लेकर आया हूँ अँगूठी और गुलाब उनके लिए,
उनके क़दमों में झुक कर उनसे इज़हार करना है।

चाहत नहीं मुझे अब किसी चीज़ की
बस उनके लिए दिल को बेकरार करना है

वह माँगे या ना माँगे मुझसे कुछ भी,
दिल और जान सब उन पर निसार करना है।

मान लिया है उनको अब रब अपना,
सजदा उनका मुझे हर बार करना है।

किसी और की आरज़ू नहीं है मुझे,
बस उनसे आँखें चार करना है।

उनकी हामी पाने के लिए,
ज़िंदगी भर भी इंतज़ार करना है।

मुझे पसंद करें या ना करें उनकी मर्ज़ी,
मुझे तो बस अपनी पसंद पर ऐतबार करना है।

अपने महबूब से आज इज़हार करना है,
वह करें या ना करें उनसे बेइंतहा प्यार करना है।


रचनाकार : आशीष कुमार
लेखन तिथि : 7 फ़रवरी, 2022
            

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