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अनाथ बच्ची (कविता)

मैं मासूम थी, नादान थी,
हर बात से अंजान थी,
मेरा क़ुसूर क्या था?
जो तूने मुझे छोड़ दिया,
मैं तो नन्ही सी जान थी।

बोझ समझा तुमने मुझे,
क्या मैं इतनी बुरी थी?
लड़की हूँ मैं तो इसमें
मेरी क्या ग़लती है।
मेरा जीवन तो तेरी देन है,
फिर क्यूँ हम में इतनी दूरी थी।

जब तूने मुझे छोड़ दिया
तो मैं अन्दर से टूट गई थी,
माँ तुझे मुझ पर
तन भी तरस ना आया,
कि मुझ पर क्या बीतेगी
मैं तेरे बिना कैसे रह पाऊँगी।

माँ तू तो मुझे समझती,
मैं अगर लड़की हूँ
तो तू भी किसी की लड़की थी।

लड़की होना अगर गुनाह है, पाप है
तो वो पाप कभी तूने भी किया था,
अपने से दूर ही करना था
तो मुझे पैदा क्यों किया था।

जिस पल मैं पैदा हुई
ना जाने वो काला दिन था
या काली रात थी,
कैसी क़िस्मत मैंने पाई
माँ-बाप के होते हुए भी मैं अनाथ थी।

मैं मासूम थी , नादान थी ,
हर बात से अंजान थी
मेरा कुसूर क्या था
जो तूने मुझे छोड़ दिया
मैं तो नन्ही सी जान थी।

मैं मासूम थी, नादान थी,
हर बात से अंजान थी,
मेरा क़ुसूर क्या था?
जो तूने मुझे छोड़ दिया,
मैं तो नन्ही सी जान थी।


लेखन तिथि : 18 जुलाई, 2019
            

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