कर लिया है गर्मी ने अभी से यह विकराल रूप,
ऐसी भीषण गर्मी से यें शक्लें हो रहीं है कुरूप।
तप रहीं है धरा एवं सभी प्राणियों का यह बदन,
बुझ ना रहीं प्यास किसी की पड़ रहीं ऐसी धूप।।
यह सहा नहीं जा रहा ताप दिन चाहें वो हों रात,
भास्कर ने फैलाई है माया दया करें ईश्वर आप।
कूलर पंखे और एसी आज सभी दे रहें जवाब,
भभक रहीं सारी धरती बरस रहा सूर्य का ताप।।
दहल रहा है गाँव-गाँव और नगर-शहर परिवार,
खेत-खलिहान भी झुलस रहें यह कैसी है मार।
सूख रहें है गाँव के छोटे बड़े यह पोखर तालाब,
बड़ी-बड़ी सड़कें भी अपना छोड़ रहीं कोलतार।।
रोम-रोम से झर रहीं है सभी के पसीनें की धार,
मच्छर भी गुनगुना रहें है अब जैसे राग मल्हार।
साँय-साँय करती हवाएँ उड़ रही आँधी भरमार,
जेठ सी गर्मी लू के थपेड़े गगन से बरसे अंगार।।
हे सूरज भगवान! अब करो नहीं हमको परेशान,
उमड़ घुमड़कर कर जाओ हे मेघराजा बरसात।
इस गर्मी ने लूट लिया सभी का अमन सुखचैन,
गंगा-जमुना की धार बहाकर हमको दे सौग़ात।।
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