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अच्छे नसीब (कविता)

मैं समझती हूँ सारी मजबूरियों को,
मैंने देखा है क़रीब से बढ़ती दूरियों को,
मुश्किलों के वक्त में भी मैंने ख़ुशियाँ बाँटी है
मुझसे होती नहीं है ग़म की बातें यूँ,
फिर भी
जब भी कोई मिलता है आँखें भर लेता है,
ना जाने यह कैसा असर हुआ है दिल पर
और क्यों यह उदासी छाई है,
सारा शहर सूना हैं और हवाएँ प्यार की महक लाई हैं,
मिलन बहुत गहरा हैं उन बीते हुए लम्हों से,
हर रोज़ गुज़रती हूँ उन मोहब्बत की गलियों से,
जो बारिश में नहीं, आँखों में वो नमी देखी हैं,
देखें है यहाँ अरबों की होते फ़क़ीरी,
हाथों में जो लकीरें नहीं, रब से तक़दीर में माँगते देखे है,
हर कोई यहाँ यूँ ही नहीं मिल जाता किसी को,
कोई एक क्रम रेखा जुदा होती हैं
हर किसी की हर किसी के लिए,
लाखों चाहते नहीं मिला देती हैं जिगरी यारो से,
इश्क़ के मिलन में कई नसीब अच्छे करने पड़ते हैं।।


लेखन तिथि : 17 फ़रवरी, 2022
            

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