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आया शहर कमाने था बरकत के वास्ते (ग़ज़ल)

आया शहर कमाने था बरकत के वास्ते,
लेकिन भटक रहे बद-क़िस्मत के वास्ते।

कह के बुरा भला हमे बद-नाम कर दिया,
ख़ामोश हम रहे थे शराफ़त के वास्ते।

उस गुल-बदन की याद में होते थे रत-जगे,
रहते थे बे-क़रार मुहब्बत के वास्ते।

परदेश जा रहा है भला कौन ख़ुशी से,
घर छोड़ कर पड़े हैं वो दौलत के वास्ते।

उसने दहेज़ के लिए पगड़ी उछाल दी,
ख़ामोश है पिता बस इज़्ज़त के वास्ते।

आया अजीब आज ज़माने का दौर है,
उठती हैं उँगलियाँ अब नफ़रत के वास्ते।


लेखन तिथि : 19 जून, 2021
अरकान: मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
तक़ती: 221 2121 1221 212
            

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