देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

आशा (कविता)

क्यूँ निराश होकर बैठ गए,
यह तो पल भर की बाधा है।
आगे तो बढ़कर दिखलाओ साथी,
पग-पग पर जिज्ञासा है।
शोषक तो सुशोभित हैं,
शोषित का क्या कहना है।
वह शेर हो, चाहे हो बकरी,
सबके मन मे आशा है।
क्यूँ निराश होकर बैठ गए,
यह तो पल भर की बाधा है।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 10 अक्टूबर, 2000
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें