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आपके लिए (लघुकथा) Editior's Choice

रीमा ससुराल से विदा होकर पहली बार मायके आई। मांँ बाप भाई बहन सब बहुत ख़ुश थे। हों भी क्यों न? अपनी सामर्थ्य से ऊपर जाकर बेटी का ब्याह अपनी समझ से अच्छे परिवार में ही किया था। एक दो दिन तक सब उल्लसित थे, फिर रीमा ने माँ के सामने अपने भावनाओं का सागर उड़ेल दिया। रीमा की बातें सुनकर माँ अवाक सी होकर रह गई।
फिर ख़ुद को सँभाला और बेटी को समझाया बुझाया हौसला दिया। जैसा कि हर माँ करती है।
लेकिन बात इतनी छोटी नहीं है कि वह अपने पति रामसरन से छिपा ले। उसनें अपने पति से सबकुछ बयान कर दिया। रामसरन सामाजिक व्यक्ति थे। अतः उन्होंने धैर्य नहीं खोया और पत्नी से कहा "बेटी को समझा दो, ससुराल में कोई भी कुछ भी कहे वो पलट कर एक भी शब्द न बोले। ससुराल में मायके का ज़िक्र तक न करे।
परसों बेटी को विदा करना है। समधी जी का फोन आया था।
हँसी खुशी से बेटी को विदा करो। जो भी बेटी को लिवाने आए उसका ढंग से स्वागत सत्कार करो। उन लोगों को अहसास भी न हो कि हमें सब पता चल गया है।
बस! फिर देखना मैं क्या चीज़ हूँ? हफ्ते दस दिन में मैं ख़ुद जाऊँगा उसके बाद हमारी बेटी को कोई कुछ नहीं कहेगा।सचमुच राज करेगी अपनी रीमा।"
मगर....।
राम सरन उकताते हुए बोले "यार! तुम औरतें क्या अगर मगर से दूर नहीं रह सकती?"

और फिर हँसी-ख़ुशी से रीमा की मायके से विदाई हो गई।
संयोग से रीमा की ससुराल के गाँव का सचिव आदेश रामसरन का मित्र था।
उसने पूरी बात आदेश को बताई और अपना इरादा भी।
आदेश रामसरन और उसके इरादे सुन गंभीर हो गया, फिर बोला "यार! बात तो तेरी ठीक है। मगर अगर कुछ उल्टा न पड़ जाए?"
देख भाई! एक तरफ़ कुँआ और एक तरफ़ खाई। निकलने का जोखिम तो लेना ही पड़ेगा न। रामसरन के स्वर में बेटी की खुशी के लिए कुछ भी कर गुज़रने का संकल्प प्रस्फूटित हो रहा था।
अंततः आदेश को तैयार होना ही पड़ा
फिर रामसरन और आदेश ने जो किया उसे देख रीमा के ससुर के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

दरअसल रामसरन आदेश के साथ रीमा की ससुराल टिकठी (बाँस से बनी सीढ़ी, जिसमें लाश को श्मशानघाट ले जाया जाता है) लेकर गए और बिना किसी औपचारिकता के रीमा के ससुर से कहा "समधीजी जुमा जुमा शादी को अभी माह भर भी नहीं हुए और आप दिनरात अपनी बहू को ताने देने में बड़ी उदारता दिखा रहे हैं कि उसके बाप ने जो दिया अपने बेटी दामाद को दिया।
तो आज उसका बाप वही आपको देने आया है। जो आप के काम आएगी। आप इसे स्वीकार करें और अपना मन शांत करें।"
रीमा के ससुर शर्मिंदगी से गड़े जा रहे थे। उन्होंने रामसरन से क्षमा प्रार्थना की।

रामसरन उन्हें गले लगाते हुए बोला "मेरा उद्देश्य आपको ज़लील करना नहीं था, कभी बेटी का बाप बनकर सोचिएगा, सब समझ में आ जाएगा।
अब चलता हूँ। मैं आपको आपकी बहू सौंप दी उसे कैसे रखना है? अब यह आप की ज़िम्मेदारी है।"
आदेश के साथ रामसरन वहाँ से चल दिए। रीमा के ससुर को ओझल होने तक उन्हें देखते रह गए।


लेखन तिथि : 2020
            

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