देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

आँखों का तारा (लघुकथा)

पूस की कड़कड़ाती ठंडी काली स्याह रात में दूर एक बिंदु टिमटिमा रहा था। कुछ सूझ न रहा था। मैं अंदाज़े से रोशनी की ओर बढ़ चला। नज़दीक पहुँचा तो देखा कि एक झौपड़ी के गेट पर चारपाई खड़ी हुई है जो कि मूंज की बान से बुनी थी जिससे छनकर रोशनी बाहर आ रही है।
"अंदर कौन है? मैं रास्ता भटक गया हूँ। मेरी मदद करो।" किसी ने बान में झाँका फिर धीरे से चारपाई के एक छोर से बंधी रस्सी खोल दी। मधुर स्वर गूँजा "आ जाओ!" यह कहकर बह तेज़ी से अंदर चली गई।
मैं सकुचाते हुए चारपाई सरका कर अंदर आ गया जहाँ टूटी चारपाई पर एक बीमार कमज़ोर बूढ़ा आदमी लेटा खाँस रहा था और नवयौवना उनकी पीठ सहला रही थी।
वृद्ध के इशारे पर सकुचाते मैं मूढ़े पर बैठ गया। बूढ़ा लम्बी लम्बी साँस ले रहा था। लगातार खाँस रहा था लड़की उसकी पीठ सहलाती, माथा दबाती, कभी सीने से लगाती रुआँसी सी थी जोकि पिता की तबियत में फ़ायदा न होता देख घबरा रही थी। मैंने लड़की से गुनगुना पानी मँगाया और झोले से दवा की पुड़िया निकाल कर वृद्ध को खिलाई। थोडी देर बाद वृद्ध को सुकून आया। उसने मेरा शुक्रिया अदा किया।
आराम में आने पर उसने बताया कि बह काफ़ी दिनों से बीमार है। पत्नि रही नहीं। दोनों पुत्रों ने किनारा कर लिया। जीवन की संध्या में यही एक बेटी उसका सहारा है जो दिन-रात उसकी देखभाल एवं सेवा करती है। उसने कहा कि वह चाहता है कि जीते जी कोई भला मानुष उसकी प्यारी नेक बेटी को अपना लें।
वह आगे बोला कि उसकी अंतरात्मा कहती है कि मैं ही हूँ जिसकी उसे तलाश थी। प्रभु ने उसकी प्रार्थना सुन ली और मुझे ही उसकी आँखों की तारा, बेटी का सौभाग्य बनाकर भेजा है तत्पश्चात गरीब ब्राह्मण अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में रख परमलोक गमन किया। पिता की देवगति से दुःखी नवयौवना की अश्रुधार से मेरा काँधा तर हो गया।
अचानक हुए घटनाक्रम से असहज मेरे मन का पाथर कुछ क्षण बाद पिघल गया और मैनें सुकन्या को अपने सीने से लगा कर अपना लिया।


लेखन तिथि : 21 दिसम्बर, 2021
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें