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कहानी
गुलकी बन्नो - धर्मवीर भारती
सृजन तिथि :
‘‘ऐ मर कलमुँहे!’ अकस्मात् घेघा बुआ ने कूड़ा फेंकने के लिए दरवाज़ा खोला और चौतरे पर बैठे मिरवा को गाते हुए देखकर कहा,
एहसास - आशीष कुमार
सृजन तिथि : 15 अक्टूबर, 2022
मल्होत्रा परिवार की लाडली पद्मिनी उर्फ़ पम्मी ख़ुश-मिज़ाज लड़की थी। सुंदरता ऐसी की चाँद भी शरमा जाए। गोल मटोल मासूम स
बिन बुलाया मेहमान - आशीष कुमार
सृजन तिथि : 6 सितम्बर, 2022
वह आता है। रोज़ आता है। बिन बुलाए आता है। वह जो मेरा कुछ भी नहीं लगता पर मेरा बहुत कुछ है। उसे देखे बिना मैं नहीं रह सक
ठेस - फणीश्वरनाथ रेणु
सृजन तिथि :
खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं। इसलिए, खेत-खलिहान
शत्रु - अज्ञेय
सृजन तिथि :
ज्ञान को एक रात सोते समय भगवान ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा, “ज्ञान, मैंने तुम्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर संसार में
पंच से पक्षकार - अंकुर सिंह
सृजन तिथि : 19 जुलाई, 2022
हरिप्रसाद और रामप्रसाद दोनों सगे भाई थे। उम्र के आख़िरी पड़ाव तक दोनों के रिश्ते ठीक-ठाक थे। दोनों ने आपसी सहमति से
मुक्ति-मार्ग - प्रेमचंद
सृजन तिथि :
सिपाही को अपनी लाल पगड़ी पर, सुंदरी को अपने गहनों पर और वैद्य को अपने सामने बैठे हुए रोगियों पर जो घमंड होता है, वही क
नशा - प्रेमचंद
सृजन तिथि :
ईश्वरी एक बड़े ज़मींदार का लड़का था और मैं एक ग़रीब क्लर्क का, जिसके पास मेहनत-मजूरी के सिवा और कोई जायदाद न थी। हम द
कामयाबी - अंकुर सिंह
सृजन तिथि : जनवरी, 2021
ठाकुर वंशीलाल हीरापुर गाँव के बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, साथ में क्षेत्र के कई गावों में ठाकुर साहब की सामाजिक और
हृदय परिवर्तन - अंकुर सिंह
सृजन तिथि : 26 अक्टूबर, 2021
"अच्छा माँ, मैं चलता हूँ ऑफ़िस आफिस को लेट हो रहा है। शाम को थोड़ा लेट आऊँगा आप और पापा टाइम से डिनर कर लेना।" अंकित ने
आईना - अंकुर सिंह
सृजन तिथि : 8 अक्टूबर, 2021
"बेटा सुनील, मैंने पूरे जीवन की कमाई नेहा की पढ़ाई में लगा दी, मेरे पास दहेज में देने के लिए कुछ भी नहीं है।" शिवनाराय
ख़ुदकुशी क्यूँ की? - सुषमा दीक्षित शुक्ला
सृजन तिथि : 5 जून, 2021
27 वर्षीय रोहित सरकारी बैंक में मैनेजर के पद पर तैनात था, जिसका विवाह 2 वर्ष पूर्व ख़ूबसूरत दीपिका से हुआ था। दोनों का
मुक्त आकाश - सुधीर श्रीवास्तव
सृजन तिथि : 17 अगस्त, 2020
घनघोर वारिश के बीच कच्चे जंगली रास्ते पर भीगता काँपता हुआ सचिन घर की ओर बढ़ रहा था। उसे माँ की चिंता हो रही थी, जो इस व
उपहार - सुधीर श्रीवास्तव
सृजन तिथि : अगस्त, 2020
आज रक्षाबंधन का त्योहार था। मेरी कोई बहन तो थी नहीं जो मुझे (श्रीश) कुछ भी उत्साह होता। न ही मुझे किसी की प्रतीक्षा म
सफ़र से हमसफ़र - अंकुर सिंह
सृजन तिथि : 5 अगस्त, 2021
ये सीट मेरी है, विजयवाड़ा स्टेशन पर इतना सुनते अमित ने पीछे मुड़कर देखा तो एक हमउम्र की लड़की एक हाथ में स्मार्ट फोन
भोर की प्रतीक्षा में - प्रवीण श्रीवास्तव
सृजन तिथि : 2020
सुधा गृह कार्य से निपटकर आराम करने की ही सोच रही थी कि अचानक किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी। मन ही मन कुढ़ती हुई सुधा दरवा
कर भला तो हो भला - अंकुर सिंह
सृजन तिथि : 6 जुलाई, 2021
"क्या हुआ मोहन, इतने उदास क्यों हो? तुम तो इंटरव्यू के लिए गए थे, क्या हुआ तुम्हारी नौकरी का?" -जाड़े के दिनों में मोहन
प्रेम की फ़सल - रोहित गुस्ताख़
सृजन तिथि : दिसम्बर, 2020
वक़्त के साथ सोहन भी बड़ा हो रहा था, जिस क़बीले में वो रहता था। वहाँ अक्सर लड़ाई-झगड़ा, गाली-गलौज लोग एक दूसरे को बिल्कुल न
सौतेला - सुधीर श्रीवास्तव
सृजन तिथि : 2021
माँ को रोता देख रवि परेशान सा हो गया। पास में बैठे गुम-सुम बड़े भाई से पूछा तो माँ फट पड़ी। उससे क्या पूछता है? मैं ही बत
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