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त्रिभंगी छंद

प्रेम की भाषा - संजय राजभर 'समित'
  सृजन तिथि : 2 दिसम्बर, 2022
अंतः से बोलो, मधु रस घोलो, प्रेम सरल हो,धाम करें। ममता की भाषा, सबकी आशा, पशु भी समझे, काम करें॥ परखते हैं खरा, समझो न ज़
छोटे दलों का गठबंधन - संजय राजभर 'समित'
  सृजन तिथि : 28 जुलाई, 2021
यहाँ संख्या मंत्र, बने है यंत्र, इस लोकतंत्र, गीत चले। जैसी गति तेरी, वैसी मेरी, तेरी मेरी, मीत भले।। गठजोड़ ज़रूरी, क
वो बारिश का दिन - संजय राजभर 'समित'
  सृजन तिथि : 2021
वो बारिश का दिन, रहे लवलीन, काग़ज़ी नाव, अच्छे थे। हम बच्चों का दल, देखते कमल, लड़ते थे पर, सच्चे थे।। लड़कपन थी ख़ूब, कीच

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