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ग़ज़ल

अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया - शाद अज़ीमाबादी
  सृजन तिथि :
अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया, कि मुँह से नाम लिया दिल में तू उतर आया। बहुत दिनों पे मिरी चश्म में नज़र आया,
तेरी ज़ुल्फ़ें ग़ैर अगर सुलझाएगा - शाद अज़ीमाबादी
  सृजन तिथि :
तेरी ज़ुल्फ़ें ग़ैर अगर सुलझाएगा, आँख वालों से न देखा जाएगा। सब तरह की सख़्तियाँ सह जाएगा, क्यूँ दिला तू भी कभी क
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ - शाद अज़ीमाबादी
  सृजन तिथि :
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ, खिलौने दे के बहलाया गया हूँ। हूँ इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाह, इधर से मुद्दतों आया गय
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए - गोपालदास 'नीरज'
  सृजन तिथि :
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए। जिस की ख़ुश्बू से महक जाए पड़ोसी का भी घर, फूल इस
बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा - गोपालदास 'नीरज'
  सृजन तिथि :
बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा, वो आदमी भी यहाँ हम ने बद-चलन देखा। ख़रीदने को जिसे कम थी दौलत-ए-दुनिया, किसी कबीर
ख़ुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की - गोपालदास 'नीरज'
  सृजन तिथि :
ख़ुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की, खिड़की खुली है फिर कोई उन के मकान की। हारे हुए परिंद ज़रा उड़ के देख तू, आ जाएगी
अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुई - गोपालदास 'नीरज'
  सृजन तिथि :
अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुई, मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई। आप मत पूछिए क्या हम पे सफ़र में गुज़री,
गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारो - गोपालदास 'नीरज'
  सृजन तिथि :
गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारो, कि भीगे हम भी ज़रा संग संग फिर यारो। किसे पता है कि कब तक रहेगा ये मौसम, रखा है बाँध क
हम तिरी चाह में ऐ यार वहाँ तक पहुँचे - गोपालदास 'नीरज'
  सृजन तिथि :
हम तिरी चाह में ऐ यार वहाँ तक पहुँचे, होश ये भी न जहाँ है कि कहाँ तक पहुँचे। इतना मालूम है ख़ामोश है सारी महफ़िल, पर
इक सुब्ह है जो हुई नहीं है - अली सरदार जाफ़री
  सृजन तिथि :
इक सुब्ह है जो हुई नहीं है, इक रात है जो कटी नहीं है। मक़्तूलों का क़हत पड़ न जाए, क़ातिल की कहीं कमी नहीं है। वीर
दिल तुम्हारे दिल में अपना इक ठिकाना ढूँढ़ता है - सुशील कुमार
  सृजन तिथि : 23 अप्रैल, 2021
दिल तुम्हारे दिल में अपना इक ठिकाना ढूँढ़ता है, हो मिलन धरती का अंबर से बहाना ढूँढ़ता है। खो दिया अनमोल जीवन तुमको प
जल ओक में भरने लगी - अविनाश ब्यौहार
  सृजन तिथि : जनवरी, 2022
जल ओक में भरने लगी, वह आचमन करने लगी। जब भी हवा आँधी बनी, ये सृष्टि भी डरने लगी। होता अगर है कोसना, मुझमें दुआ झरने
इस तरह मिल कि मुलाक़ात अधूरी न रहे - कुँअर बेचैन
  सृजन तिथि :
इस तरह मिल कि मुलाक़ात अधूरी न रहे, ज़िंदगी देख कोई बात अधूरी न रहे। बादलों की तरह आए हो तो खुल कर बरसो, देखो इस बार
आँखों से जब ये ख़्वाब सुनहरे उतर गए - कुँअर बेचैन
  सृजन तिथि :
आँखों से जब ये ख़्वाब सुनहरे उतर गए, हम दिल में अपने और भी गहरे उतर गए। साँपों ने मन की बीन को काटा है इस तरह, थे उस क
इस वक़्त अपने तेवर पूरे शबाब पर हैं - कुँअर बेचैन
  सृजन तिथि :
इस वक़्त अपने तेवर पूरे शबाब पर हैं, सारे जहाँ से कह दो हम इंक़लाब पर हैं। हम को हमारी नींदें अब छू नहीं सकेंगी, जि
अश्क आँखों में कब नहीं आता - मीर तक़ी 'मीर'
  सृजन तिथि :
अश्क आँखों में कब नहीं आता, लोहू आता है जब नहीं आता। होश जाता नहीं रहा लेकिन, जब वो आता है तब नहीं आता। सब्र था एक
क्या हक़ीक़त कहूँ कि क्या है इश्क़ - मीर तक़ी 'मीर'
  सृजन तिथि :
क्या हक़ीक़त कहूँ कि क्या है इश्क़, हक़-शनासों के हाँ ख़ुदा है इश्क़। दिल लगा हो तो जी जहाँ से उठा, मौत का नाम प्या
आरज़ूएँ हज़ार रखते हैं - मीर तक़ी 'मीर'
  सृजन तिथि :
आरज़ूएँ हज़ार रखते हैं, तो भी हम दिल को मार रखते हैं। बर्क़ कम-हौसला है हम भी तो, दिलक-ए-बे-क़रार रखते हैं। ग़ैर ह
आसमाँ क्यों जल रहा है भाइयो - अविनाश ब्यौहार
  सृजन तिथि : 19 सितम्बर, 2022
आसमाँ क्यों जल रहा है भाइयो, झूठ सच को छल रहा है भाइयो। जो समय बेकार सा लगता रहा, वो समय अब ढल रहा है भाइयो। चाँद भी
ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे - एल॰ सी॰ जैदिया 'जैदि'
  सृजन तिथि : 22 सितम्बर, 2022
ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे, दिल फिर भी हम लगाते रहे। हमारी ये दिवानगी भी देखो, तुम को पाके हम इतराते रहे। दिल-ओ-
आदेश की अवहेलना - अविनाश ब्यौहार
  सृजन तिथि : 9 सितम्बर, 2022
आदेश की अवहेलना, औ है दिलों से खेलना। यदि मुश्किलों में ज़िंदगी, तब तो दुखों का झेलना। गर काम से तुम बच रहे, पापड
इक तरफ़ है प्यास दूजी ओर पानी का घड़ा - मनजीत भोला
  सृजन तिथि : 30 अगस्त, 2022
इक तरफ़ है प्यास दूजी ओर पानी का घड़ा, प्यास जूती पाँव की सिरमौर पानी का घड़ा। चाक से उतरा तो पागल जातियों में बंट ग
मज़लूम यहाँ हैं प्यार करें - अविनाश ब्यौहार
  सृजन तिथि : 2021
मज़लूम यहाँ हैं प्यार करें, कुछ थोड़ा सा उपकार करें। गर इश्क़ हुआ है धोखा तो, फिर कैसे आँखें चार करें। गजरा तो बा
वक़्त बहुत ही झूठा निकला - अविनाश ब्यौहार
  सृजन तिथि : 20 जनवरी, 2022
वक़्त बहुत ही झूठा निकला, ख़ाक मनाएँ रूठा निकला। अर्जुन की जब बात चली तो, देखो द्रोण अँगूठा निकला। कविताओं में बा
आँख ने आँसू बहाए - अविनाश ब्यौहार
  सृजन तिथि : 20 जनवरी, 2022
आँख ने आँसू बहाए, तुम बहुत ही याद आए। एक झूठी कल्पना में, ख़्वाब रातों भर सजाए। यह सरासर ज़ुल्म होगा, प्यार में सब कु
तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है - अकबर इलाहाबादी
  सृजन तिथि :
तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है, बला के पेच में आया हुआ है। न क्यूँकर बू-ए-ख़ूँ नामे से आए, उसी जल्लाद का लिक्खा ह
मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर - अकबर इलाहाबादी
  सृजन तिथि :
मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर, किस तरह उन से हमारा हाल देखा जाएगा। दफ़्तर-ए-दुनिया उलट जाएगा बातिल यक-क़लम, ज
आह जो दिल से निकाली जाएगी - अकबर इलाहाबादी
  सृजन तिथि :
आह जो दिल से निकाली जाएगी, क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी। इस नज़ाकत पर ये शमशीर-ए-जफ़ा, आप से क्यूँकर सँभाली जाएगी।
कब वो सुनता है कहानी मेरी - मिर्ज़ा ग़ालिब
  सृजन तिथि :
कब वो सुनता है कहानी मेरी, और फिर वो भी ज़बानी मेरी। ख़लिश-ए-ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रेज़ न पूछ, देख ख़ूँनाबा-फ़िशानी मेरी।
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही - मिर्ज़ा ग़ालिब
  सृजन तिथि :
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही, मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही। क़त्अ कीजे न तअल्लुक़ हम से, कुछ नहीं है तो अदावत ही सही

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