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कविता

नई जेनरेशन - अखिलेश श्रीवास्तव
  सृजन तिथि : 9 अगस्त, 2020
रंग ढंग नई जेनरेशन के हमको समझ न आए, सदी बीस को छोड़ के ये इक्कीसवीं सदी में आए। देर रात तक जगने की आदत इनके मन भाए,
पहेली जीवन की - प्रवीन 'पथिक'
  सृजन तिथि : 3 दिसम्बर, 2022
अनबुझ पहेली जीवन की, जो बचा रहा वह नहीं रहा। जो टीश कभी उठी नहीं, वह शूल न हमसे सहा गया। कितनी नदियों का पता नहीं, जो
ठंड की मिठास - रविंद्र दुबे 'बाबू'
  सृजन तिथि : 27 नवम्बर, 2022
ठंडी सिहरन शाम शहर से, तन मन ठिठुरे घर आँगन भी। तेज़ किरण लालिमा भाती, सूरज जागे देर, जल्द शयन भी॥ ओस की बूँदें हल्की
तुम हो, तुम्हारी याद है - प्रवीन 'पथिक'
  सृजन तिथि : 18 अक्टूबर, 2022
तुम हो, तुम्हारी याद है और क्या चाहिए! दिल में एक जज़्बात है, और क्या चाहिए! हृदय में उमड़ता सागर है, बहते ख़्वाबों क
कानपुर के नाम पाती - गोपालदास 'नीरज'
  सृजन तिथि :
कानपुर! आह! आज याद तेरी आई फिर स्याह कुछ और मेरी रात हुई जाती है, आँख पहले भी यह रोई थी बहुत तेरे लिए अब तो लगता है कि
सारा जग मधुबन लगता है - गोपालदास 'नीरज'
  सृजन तिथि :
दो गुलाब के फूल छू गए जब से होंठ अपावन मेरे ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुबन लगता है। रोम-रोम में खिले चमेली साँ
बेचारे कृषक - प्रशान्त 'अरहत'
  सृजन तिथि : 2019
वे नहीं जानते लड़ना अपने हक़ के लिए। वे वंचित रहते हैं तमाम सरकारी योजनाओं के बावजूद। उन्हें मयस्सर नहीं होती मूल
विवेकानंद का सपना - प्रशान्त 'अरहत'
  सृजन तिथि : 5 सितम्बर, 2019
नज़र मंज़िल पे है जिनकी, वो क़दम खुद ही बढ़ाते हैं। फिर चढ़कर आसमानों पर, सितारे गढ़ के आते हैं। चाहे दीवार बनकर मुश्किल
तुम्हारी तारीफ़ - प्रशान्त 'अरहत'
  सृजन तिथि : 3 दिसम्बर, 2020
तुम्हारी तारीफ़ों के पुल नहीं बाँधूँगा। ज़ुल्फ़ों को घटाएँ, आँखों को झीलें, होटों को कलियाँ, नदियों सी चाल, नहीं कहूँ
परोपकार की देवी मदर टेरेसा - आशीष कुमार
  सृजन तिथि : 24 अगस्त, 2022
26 अगस्त, 1910 का दिन था वो, मासूम सी खिली थी एक कली। नाम पड़ा आन्येज़े गोंजा बोयाजियू, जो थी अल्बेनियाई परिवार की लाडली
हिंद के माथे पर हिंदी - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
  सृजन तिथि : 6 जुलाई, 2022
हिंद के माथे पर हिंदी बिंदी सा चमके है, आज विश्व के हर कोने में तू मोतियों सा दमके है। बग़ैर तेरे क्या करूँ कल्पना,
गुरु सृष्टि का वरदान - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
  सृजन तिथि : 5 जुलाई, 2022
गुरु सृष्टि का सबसे सुंदर वरदान है, बिना गुरु के कहाँ किसी की पहचान है। जान कर, जो न जान पाए, 'सृजन' की नज़रों में वे
वह युद्ध था - राघवेंद्र सिंह
  सृजन तिथि : 15 जून, 2021
वह युद्ध था सत्यार्थ का, जीवन के उस यथार्थ का। वह युद्ध कुंठित बोध का, बिन शोध के प्रतिशोध का। वह युद्ध था दो नेत्र
गुरु - राघवेंद्र सिंह
  सृजन तिथि : 5 सितम्बर, 2021
गुरु केवल राह दिखाते हैं, चलना तो ख़ुद को पड़ता है। गुरु तो दीपक बन आते हैं, जलना तो ख़ुद को पड़ता है। गुरु की वाणी मे
गजानन तेरी महिमा प्यारी - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
  सृजन तिथि : 3 जुलाई, 2022
हे प्रभु! तेरी मूषक सवारी, गजानन तेरी महिमा प्यारी। भक्तों पर जब कष्ट पड़े तो, पल भर में कष्ट हरे तू सारी। प्रथम प
खोजे कृष्णा को मन - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
  सृजन तिथि : 19 जुलाई, 2022
लागी जबसे लगन, खोजे कृष्णा को मन। चैन मिलता नहीं, तुझे ढूँढ़ूँ वन-वन। जीवन की यही आस, तुझसे मिलन की बुझे न प्यास। तू
रक्षा बंधन - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
  सृजन तिथि : 4 जुलाई, 2022
कुछ रिश्तों की डोर कभी टूट न पाए, भाई-बहन के रिश्ते में खटास कभी न आए। छोटी-छोटी ग़लतियाँ जब भाई करता, माँ-बाप के ग़ुस
सावन - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
  सृजन तिथि : 2 जुलाई, 2022
सावन की बरखा में तन-मन झूम रहा है, धरा को मानो आकाश बूँदों से चूम रहा है। चिंताओं की चादर ओढ़े कृषक बैठा था, बरखा क
प्रेम - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
  सृजन तिथि : 26 मई, 2022
तेरी अनुपस्थिति ही प्रेम का एहसास कराती है पल भर का मिलन फिर बिझड़न उस पल में मेरी तड़पन तेरी यादों ने फिर जोड़ा
लक्ष्मीबाई - गोकुल कोठारी
  सृजन तिथि : 19 नवम्बर, 2022
विषय नहीं आज यह, वह नर थी या नारी थी, लेकिन थी हाहाकारी, आदिशक्ति अवतारी थी। मातृभूमि की आन पर जब भी बन आई है, नर ही क्
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई - राघवेंद्र सिंह
  सृजन तिथि : 19 नवम्बर, 2022
स्वाभिमान के रक्त से रंजित, हुई धरा यह प्रिय पावन। हिला हुकूमत का सिंहासन, और हिला सन् सत्तावन। राजवंश की शान थी ज
यह दुनिया एक भ्रम है - प्रशान्त 'अरहत'
  सृजन तिथि : 15 नवम्बर, 2022
हम जिस दुनिया में रहते हैं, वो हक़ीक़त नहीं है, एक भ्रम है। हम एक पूरे भ्रम और अधूरे सच के बीच जी रहे हैं, जो भ्रम किसी भ
चमक - संजय राजभर 'समित'
  सृजन तिथि : 16 नवम्बर, 2022
न ठनक न खनक न सनक बस चुपचाप धैर्य से शांति से अनवरत सही दिशा में होश और जोश के साथ अपने लक्ष्य की ओर आत्मविश्व
ज़िंदगी की माया - अखिलेश श्रीवास्तव
  सृजन तिथि : जनवरी, 2022
ये ज़िंदगी की माया, कोई समझ न पाया। ये ज़िंदगी हमारी, है अनबुझी पहेली॥ कभी ख़ुशी का समंदर, कभी ग़मों का है मंज़र। किसी
बादल को घिरते देखा - नागार्जुन
  सृजन तिथि :
अमल धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है। छोटे-छोटे मोती जैसे उसके शीतल तुहिन कणों को मानसरोवर के उन स्वर
उनको प्रणाम! - नागार्जुन
  सृजन तिथि :
जो नहीं हो सके पूर्ण-काम मैं उनका करता हूँ प्रणाम। कुछ कुंठित औ’ कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट जिनके अभिमंत्रित तीर हुए; रण
गांधी - नागार्जुन
  सृजन तिथि :
कल मैंने तुमको फिर देखा हे खर्वकाय, हे कृश शरीर, हे महापुरुष, हे महावीर! हाँ, लगभग ग्यारह साल बाद कल मैंने तुमको फि
सुबह-सुबह - नागार्जुन
  सृजन तिथि :
सुबह-सुबह तालाब के दो फेरे लगाए सुबह-सुबह रात्रि शेष की भीगी दूबों पर नंगे पाँव चहलक़दमी की सुबह-सुबह हाथ-पैर ठ
गुलाबी चूड़ियाँ - नागार्जुन
  सृजन तिथि :
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ, सात साल की बच्ची का पिता तो है! सामने गियर से ऊपर हुक से लटका रक्खी हैं काँच
दशरथ माँझी - गोकुल कोठारी
  सृजन तिथि : 2017
फड़कती भुजाओं का ज़ोर देखा, क्या ख़ूब बरसे घनघोर देखा। कर्मों की बहती दरिया देखी, उससे निकलती नई राह देखी। इतिहास रच

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