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कविता

हिन्दी - हेमन्त कुमार शर्मा
  सृजन तिथि : 13 सितम्बर, 2023
कभी छाया में कभी प्रयोग की धूप में बैठ गई। रीति के कोमल भावों से, बिहारी की गहराई में, घनानंद की भावुकता का, कम्बल
कृष्णमय जीवन - हेमन्त कुमार शर्मा
  सृजन तिथि : 6 सितम्बर, 2023
कृष्णमय जीवन की बोली, कूक रही कलाई की मोली। मीरा का प्याला, विरह की हाला। राधा की प्रतीक्षा, उद्धो की शिक्षा, गो
एक फ़ितरत सी हो गई है - हेमन्त कुमार शर्मा
  सृजन तिथि : 29 अगस्त, 2023
एक फ़ितरत सी हो गई है, चुप्प रहना। कितने मकानों की कथा, चिल्लाती ऑंखों की व्यथा। बस फँस गई है, भूल गया कहना। खारी ब
एक सपना था - हेमन्त कुमार शर्मा
  सृजन तिथि : 8 अगस्त, 2023
एक सपना था, जो जाग रहा। दूब पे बिखरी ओस का, स्पर्श जो था पाँओं को। विपन्नता से जीवनयापन का, कुल ज्ञान था गाँवों को।
यह जो स्वतंत्रता दिवस है - हेमन्त कुमार शर्मा
  सृजन तिथि : 14 अगस्त, 2023
यह जो स्वतंत्रता दिवस है। कितने जीवन भूनने पर, और कितने घर फूँकने पर, दृशित यह वरदान हुआ। सुभाष की आशा का, बिस्मिल
बरसे बादल - हेमन्त कुमार शर्मा
  सृजन तिथि : जुलाई, 2023
बरसे बादल क्रोध भरे, नश्वरता का बोध भरे। इतना पानी आँखों में, जाने कैसे रोध करे। कुछ तो सावन का असर, उस पे नयन मो
हो कर बूँद - हेमन्त कुमार शर्मा
  सृजन तिथि : 6 अगस्त, 2023
हो कर बूँद, प्यास धरा की जान सका। क्यों कोयल गाती फिरती है, क्यों रंग उसका काला है। पिय की पुकार रहे सदा, रंग विरह क
पाठ - जयप्रकाश मानस
  सृजन तिथि :
जूतों के नीचे भी आ सकती है दुर्लंघ्य पर्वत की मदांध चोटी परंतु इसके लिए ज़रूरी है- पहाड़ों के भूगोल से कहीं ज़्याद
सीढ़ियाँ - जयप्रकाश मानस
  सृजन तिथि :
सीढ़ियाँ हैं किताबें छत की ओर जाती हुईं ग़ायब हो जाती हैं छत पहुँचने से ठीक पहले जैसे कहती हों सीढ़ियाँ— कोई का
संभावनाएँ - कुँवर नारायण
  सृजन तिथि :
लगभग मान ही चुका था मैं मृत्यु के अंतिम तर्क को कि तुम आए और कुछ इस तरह रखा फैलाकर जीवन के जादू का भोला-सा इंद्रज
अपने बजाय - कुँवर नारायण
  सृजन तिथि :
रफ़्तार से जीते दृश्यों की लीलाप्रद दूरी को लाँघते हुए : या एक ही कमरे में उड़ते-टूटते लथपथ दीवारों के बीच अपने क
माध्यम - कुँवर नारायण
  सृजन तिथि :
वस्तु और वस्तु के बीच भाषा है जो हमें अलग करती है, मेरे और तुम्हारे बीच एक मौन है जो किसी अखंडता में हमको मिलाता है
चक्रव्यूह - कुँवर नारायण
  सृजन तिथि :
युद्ध की प्रतिध्वनि जगाकर जो हज़ारों बार दुहराई गई, रक्त की विरुदावली कुछ और रँगकर लोरियों के संग जो गाई गई— उसी
तुमने देखा - कुँवर नारायण
  सृजन तिथि :
तुमने देखा कि हँसती बहारों ने? तुमने देखा, कि लाखों सितारों ने? कि जैसे सुबह धूप का एक सुनहरा बादल छा जाए, और अना
पहले भी आया हूँ - कुँवर नारायण
  सृजन तिथि :
जैसे इन जगहों में पहले भी आया हूँ बीता हूँ। जैसे इन महलों में कोई आने को था मन अपनी मनमानी ख़ुशियाँ पाने को था। लग
अबकी बार लौटा तो - कुँवर नारायण
  सृजन तिथि :
अबकी बार लौटा तो बृहत्तर लौटूँगा चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं कमर में बाँधे लोहे की पूँछे नहीं जगह दूँगा स
इतना कुछ था - कुँवर नारायण
  सृजन तिथि :
इतना कुछ था दुनिया में लड़ने-झगड़ने को पर ऐसा मन मिला कि ज़रा-से प्यार में डूबा रहा और जीवन बीत गया...
खल-वंदना - काका हाथरसी
  सृजन तिथि :
प्रथम करूँ खल-वंदना, श्रद्धा से सिर नाय। मेरी कविता यों जमे, ज्यो कुल्फ़ी जम जाय॥ ज्यो कुल्फ़ी जम जाय, आप जब कविता न
चुनाव की चोट - काका हाथरसी
  सृजन तिथि :
हार गए वे, लग गई इलेक्शन में चोट। अपना अपना भाग्य है, वोटर का क्या खोट? वोटर का क्या खोट, ज़मानत ज़ब्त हो गई। उस दिन स
चोटी के कवि - काका हाथरसी
  सृजन तिथि :
बोले माइक पकड़ कर, पापड़चंद ‘पराग’। चोटी के कवि ले रहे, सम्मेलन में भाग॥ सम्मेलन में भाग, महाकवि गामा आए। काका, चाच
तथाकथित पत्रकार - काका हाथरसी
  सृजन तिथि :
पत्रकार दादा बने, देखो उनके ठाठ। काग़ज़ का कोटा झपट, करें एक के आठ॥ करे एक के आठ, चल रही आपाधापी। दस हज़ार बतलाए, छप
गुड़ और चीनी - काका हाथरसी
  सृजन तिथि :
चीनी हमले से हुई, मिस ‘चीनी’ बदनाम। गुड़ की इज़्ज़त बढ़ गई और बढ़ गए दाम॥ और बढ़ गए दाम, ‘गुलगुले’ तब बन पाए। सवा रु
घाटे पर घाटा - काका हाथरसी
  सृजन तिथि :
भोंदूमल बेकार थे, हुआ पिलपिला हाल। फ़ाक़े होने लगे तब, पहुँच गए ससुराल॥ पहुँच गए ससुराल, बीस दिन करो चराई। पाँच कि
अँगूठा छाप नेता - काका हाथरसी
  सृजन तिथि :
चपरासी या कलर्क जब करना पड़े तलाश। पूछा जाता—क्या पढ़े, कौन क्लास हो पास? कौन क्लास हो पास, विवाहित हो या क्वारे।
भला लगता है - रमेश रंजक
  सृजन तिथि :
डाकिये का दीख जाना मुस्कुराते हुए आना भला लगता है। सोचता हूँ कुछ देर बैठाल कर बातें करूँ सामने सिगरेट, बीड़ी,
स्वभाव - कन्हैयालाल सेठिया
  सृजन तिथि :
नहीं कर पाता सागर को मीठा सरिताओं का समर्पण, कर सकता प्रचंड सूर्य उसे विवश रचने के लिए पीयूषवर्षी मेघ!
रागिनी - कन्हैयालाल सेठिया
  सृजन तिथि :
भले ही फूँकते रहो बाँसुरी बिना धरे छिद्रों पर उँगलियाँ नहीं निकलेगी प्रणय की रागिनी!
मेरे मन का भार - केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'
  सृजन तिथि :
मेरे मन का भार प्यार से कैसे तोल सकोगे? आज मौन का पट प्यारे! तुम कैसे खोल सकोगे? हिय-हारक मृदुहीर-हार पर लुटते लाख-ह
ऐ अतीत की घड़ियाँ! - केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'
  सृजन तिथि :
अधर न आओ, तड़प रहा हूँ ऐ अतीत की घड़ियाँ! इधर न आओ, छिन्न पड़ी हैं, प्राणों की पंखुड़ियाँ! मलिन-विषाद-तन-में पीड़ित जी
करुणा की छाया न करो - केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'
  सृजन तिथि :
जलने दो जीवन को इस पर करुणा की छाया न करो! इन असंख्य-घावों पर नाहक अमृत बरसाया न करो! फिर-फिर उस स्वप्निल-अतीत की गाथ

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